न्यूजरायगढ़

ग्राम पंचायत खम्हार में लापरवाही की हद पार! मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए परिजन दर-दर भटकनें को मजबूर!

लैलूंगा यह मामला न केवल शर्मनाक है, बल्कि ग्राम पंचायत खम्हार की प्रशासनिक सुस्ती और गैरजिम्मेदारी का ज़िंदा उदाहरण भी है। 12 तारीख को एक व्यक्ति की मृत्यु हुई, लेकिन इतने दिनों बाद भी उसका मृत्यु प्रमाण पत्र जारी नहीं किया गया।

परिजनों ने बताया कि जब प्रमाण पत्र बन भी गया, तो उसमें मृत्यु तिथि ही गलत दर्ज कर दी गई! गलती बताने पर सरपंच और सचिव ने सुधार का आश्वासन तो दिया, पर हकीकत में सिर्फ टालमटोल और “अभी मिल जाएगा” जैसे झूठे वादे ही सुनने को मिल रहे हैं।

थक चुके परिजन अब सवाल कर रहे हैं —

“जब मृत्यु प्रमाण पत्र जैसे बुनियादी दस्तावेज़ के लिए इतनी जिल्लत झेलनी पड़ रही है, तो बाकी कामों का क्या हाल होगा?”

ग्राम पंचायत खम्हार में सरपंच-सचिव की लापरवाही और संवेदनहीन रवैया जनता के धैर्य की परीक्षा बन चुका है। यह सिर्फ एक परिवार की कहानी नहीं, बल्कि उस व्यवस्था की सच्चाई है जो जनता की सेवा के बजाय अपनी कुर्सी बचाने में व्यस्त है।

“मृत्यु के बाद भी आराम नहीं… खम्हार पंचायत में संवेदनहीनता की इंतिहा!”

परिजनों का आरोप है कि इसी महीने की 12 तारीख को मृत्यु हुई थी, लेकिन आज तक मृत्यु प्रमाण पत्र नहीं बन पाया है। शुरुआत में जब प्रमाण पत्र तैयार हुआ तो उसमें मृत्यु की तिथि गलत दर्ज कर दी गई। परिजनों ने गलती सुधारने के लिए कई बार सरपंच और सचिव से संपर्क किया, लेकिन हर बार सिर्फ आश्वासन मिला — “अभी बन जाएगा।” अब हाल यह है कि सरपंच फोन उठाना तक बंद कर चुके हैं। परिजनों की मानें तो वे रोज़ पंचायत और फोन के चक्कर काट रहे हैं, फिर भी कोई सुनवाई नहीं हो रही। एक साधारण मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए इतनी मशक्कत यह दिखाती है कि ग्राम पंचायत खम्हार में जिम्मेदारी नाम की चीज़ बाकी नहीं रह गई है।

लोगों में अब यह चर्चा तेज हो गई है कि क्या लैलूंगा जनपद की सीईओ प्रीति नायडू अपने क्षेत्र का कार्यभार ठीक से नहीं संभाल पा रहीं? ग्राम पंचायत खम्हार जैसे मामलों में लापरवाही, फाइलों की देरी और जिम्मेदारी से बचने का रवैया यह दर्शाता है कि जनपद स्तर पर निगरानी व्यवस्था पूरी तरह ढीली पड़ चुकी है। जब एक साधारण मृत्यु प्रमाण पत्र तक समय पर जारी नहीं हो पा रहा, तो सवाल उठना लाजमी है — क्या जनपद प्रशासन जनता की समस्याओं से मुंह मोड़ चुका है? अब ग्रामीणों का गुस्सा सीधे सीईओ प्रीति नायडू की कार्यप्रणाली पर उठ रहा है, और लोग पूछ रहे हैं — “आख़िर जिम्मेदार कौन?”

ग्रामीणों का कहना है कि ग्राम पंचायत के सचिव का यहां आना-जाना बेहद कम रहता है, जिसके चलते पंचायत के कई जरूरी कार्य अटके पड़े हैं। मृत्यु प्रमाण पत्र का मामला भी इसी लापरवाही का शिकार बना हुआ है। इस संबंध में जब मीडिया की टीम ने सचिव से संपर्क करने की कोशिश की, तो उन्होंने किसी भी प्रकार का जवाब नहीं दिया। सचिव का यह मौन रहना और स्थिति पर स्पष्टीकरण न देना यह साबित करता है कि ग्राम स्तर पर जवाबदेही पूरी तरह खत्म हो चुकी है, और जनता की समस्याओं पर ना सुनवाई है, ना संवेदना।

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