न्यूजरायगढ़

झरन पंचायत का मनरेगा घोटाला: रोजगार सहायक की ‘ऊपर तक सेटिंग’ – मुख्यमंत्री तक पहुँची शिकायत, फिर भी कार्रवाई गायब! शासन-प्रशासन की चुप्पी ही सबसे बड़ा सबूत?

रायगढ़/लैलूंगा।
मनरेगा जैसी योजना, जो ग़रीबों के लिए रोज़गार और सम्मान का आधार है, वह अब भ्रष्टाचारियों का एटीएम मशीन बन गई है।
ग्राम पंचायत झरन इसका ताज़ा उदाहरण है, जहाँ रोजगार सहायक दुर्योधन प्रसाद यादव ने सरकारी तंत्र को अपने खेल का मोहरा बना दिया है।

घोटाले की परतें खुलीं तो सामने आए कड़वे सच –

कॉलेज और यूनिवर्सिटी में परीक्षा दे रहे रिश्तेदारों को आधिकारिक रिकॉर्ड में मजदूर बताकर मजदूरी निकाली गई।

ग़रीब, अशिक्षित विधवाओं और महिलाओं के खातों में मनरेगा की राशि डालकर, उनसे जबरन अंगूठा लगवाकर पूरा पैसा खुद हड़प लिया गया।

सड़क, डबरी, सुपोषण वाटिका और भूमि समतलीकरण – कागजों पर पूरे, मगर ज़मीनी हकीकत में एक ईंट तक नहीं लगी।

रोजगार सहायक की जहरीली स्वीकारोक्ति –

गांव वालों के सामने खुद उसने कबूल किया –
“अधिकारियों के दबाव में भ्रष्टाचार करता हूँ… ऊपर तक सेटिंग कर रखी है… तुम बताओ तुम्हें कितना चाहिए।”
➡ इस पूरे बयान का वीडियो सबूत भी मौजूद है।

लेकिन सबसे बड़ा सवाल –

जब सबूत चिल्ला-चिल्लाकर सच बता रहे हैं, तो कार्रवाई क्यों नहीं?

क्या रोजगार सहायक को बचाने के लिए शासन-प्रशासन की अदृश्य ताकत काम कर रही है?

क्या मुख्यमंत्री तक पहुँची शिकायत भी उसी ठंडे बस्ते में जाएगी, जहाँ हजारों फाइलें सालों से धूल खा रही हैं?

ग्रामीणों का गुस्सा –

ग्राम पंचायत झरन के ग़रीब और मजदूर अब बग़ावत के मूड में हैं। उनका कहना है –
“अगर इस बार भी कोई कार्रवाई नहीं हुई, तो साफ हो जाएगा कि भ्रष्टाचार सिर्फ पंचायत स्तर पर नहीं, बल्कि ऊपर तक फैला हुआ है।”

ग्रामीणों का आक्रोश इस बात का गवाह है कि अब वे केवल शिकायत करने तक सीमित नहीं रहेंगे। लोग खुलेआम कह रहे हैं कि –
“सरकारी कर्मचारी और अधिकारी मिलकर गरीबों का हक़ खा रहे हैं… और सरकार चुप है।”

शासन-प्रशासन की साख पर बड़ा सवाल –

यह मामला अब केवल झरन पंचायत तक सीमित नहीं रहा।
यह सीधे-सीधे शासन-प्रशासन की नीयत पर सवाल खड़ा करता है।

👉 क्या सरकार भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए सिस्टम का इस्तेमाल कर रही है?
👉 क्या मुख्यमंत्री तक पहुँच चुकी शिकायत भी सिर्फ़ दिखावे की राजनीति बनकर रह जाएगी?

अगर मुख्यमंत्री और प्रशासन इस मामले में सख़्त कदम नहीं उठाते, तो यह साफ हो जाएगा कि –
“मनरेगा की मज़दूरी गरीबों तक पहुँचने से पहले ही भ्रष्टाचारियों की जेब में चली जाती है… और ऊपर तक सबको इसका हिस्सा मिलता है।”

नतीजा क्या होगा?

ग्राम पंचायत झरन का घोटाला अब केवल एक गांव का मुद्दा नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश की साख और सरकार की नीयत पर सीधा सवाल है।

अब देखना होगा कि –
क्या दोषी रोजगार सहायक सलाखों तक पहुँचेगा?
या फिर यह मामला भी ‘ठंडी बस्ती’ की फाइलों में कैद होकर रह जाएगा?

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