रायगढ़।
लैलूंगा जनपद इन दिनों भ्रष्टाचार और अफसरशाही का गढ़ बन चुकी है। यहां जनता की आवाज़ दबकर रह जाती है और सिर्फ अफसरों–कर्मचारियों की मनमानी का राज चलता है। हालात ये हैं कि अफसर वर्षों से एक ही जगह पर “अंगद के पांव” की तरह जमे हुए हैं। मानो सरकारी कुर्सी उनकी पुश्तैनी जागीर हो, जिसे कोई छीन ही नहीं सकता।
स्थानीय लोगों का आरोप है कि इन अफसरों ने जनपद पंचायत को जनता की सेवा का केंद्र नहीं, बल्कि मलाईखोरी का अड्डा बना डाला है। नियम–कानून ताक पर रख दिए गए हैं और “सेटिंग–सिस्टम” के दम पर हर कार्रवाई और जांच दबा दी जाती है। यही वजह है कि सरकार और प्रशासन की पूरी मशीनरी भी इनके सामने बेबस नज़र आती है।
जनपद पंचायत का हाल ऐसा है कि –
फाइलें सिर्फ पैसे और जुगाड़ पर चलती हैं,
फर्जी बिल–वाउचर बनाकर लाखों–करोड़ों का गड़बड़झाला किया जाता है,
योजनाओं की राशि बीच में ही गायब हो जाती है,
और जनता की समस्याएं कागजों में ही दम तोड़ देती हैं।
सूत्रों के मुताबिक, अफसर–कर्मचारी ठेकेदारों और नेताओं से मिलकर योजनाओं में जमकर हेरफेर कर रहे हैं। गरीबों और जरूरतमंदों तक सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने के बजाय, इन अफसरों की जेब भरना ही सबसे बड़ा मकसद बन चुका है।
जनता का गुस्सा उबाल पर
ग्रामीणों का कहना है कि शिकायत करने पर भी कोई सुनवाई नहीं होती। उल्टा फाइलें दबा दी जाती हैं और शिकायतकर्ता को हतोत्साहित किया जाता है। यही कारण है कि अब जनता खुलकर आरोप लगा रही है कि लैलूंगा जनपद पंचायत पूरी तरह से “भ्रष्टाचार का साम्राज्य” बन चुकी है।
क्या सरकार हिलाएगी इनकी जड़ें?
सबसे बड़ा सवाल यही है कि –
क्या सरकार और प्रशासन इन “खानदानी अफसरों” को हटा पाएंगे?
क्या कभी इन अंगद-पांव अफसरों की पकड़ टूटेगी?
या फिर जनता इसी तरह लूटी जाती रहेगी और भ्रष्टाचार की बेलगाम हुकूमत यूं ही चलती रहेगी?