जिंदल की 8 दिसंबर जनसुनवाई के खिलाफ धौराभाठा में उबल रहा जनाक्रोश
तमनार ब्लॉक के धौराभाठा सहित 14 ग्राम पंचायतों के ग्रामीण पिछले तीन दिनों से टेंट लगाकर जमीन-जंगल के बचाव की लड़ाई में डटे हुए हैं। 8 दिसंबर को होने वाली प्रस्तावित जनसुनवाई के विरोध में हजारों ग्रामीण एकजुट होकर पूरी ताकत के साथ सरकार और प्रशासन को यह संदेश दे रहे हैं कि बिना सहमति, बिना विश्वास और बिना पारदर्शिता के किसी भी कॉरपोरेट परियोजना को वे अपनी धरती पर कदम नहीं रखने देंगे।
ग्रामीणों का आरोप है कि जनसुनवाई लोगों की राय पूछने का मंच नहीं बल्कि केवल एक औपचारिकता बनकर रह गई है। प्रभावित गांवों को नोटिस की सही जानकारी नहीं दी गई, दस्तावेजों में कई विसंगतियां हैं, और बार-बार विरोध जताने के बावजूद प्रशासन कंपनियों के दबाव में जनसुनवाई कराने पर तुला हुआ है। ग्रामीण कहते हैं कि यह जनसुनवाई विकास नहीं, विनाश की शुरुआत है।
धरने में महिलाएं, किसान, आदिवासी नेतृत्व और युवा लगातार मौजूद हैं और कड़कड़ाती ठंड में भी टेंट छोड़ने को तैयार नहीं। ग्रामीणों का कहना है कि यदि जंगल कटेगा, पहाड़ टूटेगा और जमीन अधिग्रहण का खेल जारी रहा, तो आने वाली पीढ़ियों के पास न खेती बचेगी, न पानी, न आजीविका। जल-जंगल-ज़मीन की इस लड़ाई को लोग अपने अस्तित्व का संघर्ष बता रहे हैं।
धरना स्थल से ग्रामीणों ने साफ चेतावनी दी है कि 8 दिसंबर की जनसुनवाई को वे किसी भी कीमत पर नहीं होने देंगे। उनका कहना है कि जब तक परियोजना की पूरी जानकारी सार्वजनिक नहीं की जाती, ग्रामसभा की सहमति नहीं ली जाती और ग्रामीणों की मांगों का सम्मान नहीं किया जाता — तब तक यह आंदोलन और भी उग्र होगा। ग्रामीणों की मांग है कि सरकार जनता की आवाज सुने, न कि कंपनियों के दबाव में फैसले ले।
ग्रामीणों से मिली जानकारी के अनुसार, स्थिति इतनी तनावपूर्ण है कि अब तक ग्रामीणों ने कंपनी को जनसुनवाई के लिए न तो जगह उपलब्ध कराई है और न ही टेंट तक लगाने दिया है। गांवों की सीमाओं पर निगरानी तेज है, और जैसे ही कंपनी के प्रतिनिधि या उनके वाहनों की कोई गतिविधि दिखती है, लोग तुरंत जमा होकर उन्हें वापस लौटा देते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि जब तक परियोजना की पूरी सच्चाई सामने नहीं आती और ग्रामसभाओं की स्पष्ट सहमति नहीं ली जाती, तब तक वे किसी भी कीमत पर जनसुनवाई की तैयारी नहीं होने देंगे। अब पूरे इलाके की निगाहें 8 दिसंबर पर टिकी हैं—क्या प्रशासन वास्तव में जनसुनवाई करा पाएगा या फिर ग्रामीणों के उग्र विरोध के आगे एक बार फिर पूरा कार्यक्रम ठप हो जाएगा? विरोध की तीव्रता और ग्रामीणों की एकजुटता को देखकर यह साफ है कि यह लड़ाई सिर्फ एक औपचारिक प्रक्रिया को रोकने की नहीं, बल्कि अपने अस्तित्व, अपनी जमीन और अपने हक की रक्षा की लड़ाई है।
पिछले तीन दिनों से 14 गांवों के ग्रामीण खुले आसमान के नीचे टेंट लगाकर दिन-रात विरोध पर डटे हुए हैं। महिलाएं चूल्हा जलाकर वहीं खाना बना रही हैं, किसान और युवक चौबीसों घंटे पहरा दे रहे हैं, और पूरे आंदोलन स्थल को एक अस्थायी गांव में बदल दिया गया है। ग्रामीणों का कहना है कि जब तक उनकी जमीन और जंगल सुरक्षित नहीं होते, न ठंड उनकी हिम्मत तोड़ेगी और न ही कंपनी की कोई चाल उन्हें यहां से हटा पाएगी।
