लैलूंगा जनपद में विकास की आड़ में लूट का महाघोटाला — लगभग पंचायत में हुआ है बंदरबांट, पर जिम्मेदार कौन?

रायगढ़। रायगढ़ जिले के लैलूंगा जनपद पंचायत में विकास के नाम पर जो कुछ हुआ, वह अब धीरे-धीरे महाघोटाले का रूप लेता जा रहा है। पिछले दो से पाँच सालों में करोड़ों रुपये की राशि योजनाओं के नाम पर खर्च दिखाई गई, लेकिन ज़मीन पर विकास के नाम पर कुछ भी नहीं बदला। अब सवाल यह उठ रहा है — आखिर जिम्मेदार कौन है?
हर पंचायत में फर्जीवाड़े की परतें खुलीं
ग्राम पंचायत झरन, बसंतपुर, आमापाली, जामबहार,सहित लगभग हर पंचायत में फर्जी भुगतान, अधूरे कामों को पूर्ण बताना और बिना सप्लाई के बिल पास करने जैसी अनियमितताएँ सामने आई हैं। मनरेगा, प्रधानमंत्री आवास योजना, शौचालय निर्माण, गौठान योजना, तालाब खुदाई जैसी योजनाओं में दिखाया गया खर्च करोड़ों में है — लेकिन न काम पूरा हुआ, न सामग्री पहुँची। यहाँ तक कि कुछ जगहों पर फेब्रिकेशन व हार्डवेयर दुकानें कागज़ों में ही मौजूद हैं, ज़मीन पर उनका अस्तित्व ही नहीं।
जनपद से लेकर पंचायत तक — मिलीभगत का तगड़ा नेटवर्क
इस घोटाले की जड़ सिर्फ पंचायत स्तर पर नहीं, बल्कि जनपद दफ्तर तक फैली है। रोज़गार सहायक, पंचायत सचिव ,और जनपद अधिकारी — सभी पर मिलीभगत के आरोप लग रहे हैं। हर साल होने वाले ऑडिट में भी सबकुछ “संतोषजनक” बताया गया, जो यह साबित करता है कि ऑडिट रिपोर्ट भी घोटाले के संरक्षण का हिस्सा बन चुकी है।
यह पूरा तंत्र ऐसा है जहाँ फाइलों में विकास पूरा होता है और जनता सिर्फ धूल फाँकती है।
ग्रामीणों की आवाज़ — सच बोलने पर जान का खतरा
कई ग्रामीण अब सामने आकर बोल रहे हैं कि “कागज़ों में सड़क बनी, तालाब खुदा, नाली बनी — लेकिन ज़मीन पर कुछ नहीं।” ग्राम झरन के कन्हैया दास महत ने मनरेगा घोटाले का खुलासा किया और अब उन्हें जान से मारने की धमकियाँ मिल रही हैं। उन्होंने पुलिस में अग्रिम सुरक्षा आवेदन दिया है। यह डर बताता है कि जिन लोगों ने जनता के विकास की रकम लूटी है, उनके पास सिर्फ पैसा नहीं बल्कि प्रशासनिक संरक्षण भी है।
वर्षों से एक ही जगह जमे अधिकारी — भ्रष्टाचार की जड़ यही है
लैलूंगा जनपद में कई अधिकारी और कर्मचारी वर्षों से एक ही पद पर जमे हुए हैं। ट्रांसफर नीति यहाँ मज़ाक बनकर रह गई है। जब वही लोग साल-दर-साल योजनाओं की फाइलें बनाते हैं और जांच भी खुद करते हैं, तो परिणाम जाहिर है — भ्रष्टाचार स्थायी हो चुका है। विकास योजनाएँ बस फाइलों तक सीमित हैं, ज़मीन पर जनपद कार्यालय “विकास उद्योग” बन चुका है।
प्रशासन की चुप्पी — आखिर जिम्मेदारी तय कौन करेगा?
इतने बड़े पैमाने पर गड़बड़ियों के बावजूद न तो कोई जांच शुरू हुई, न किसी कर्मचारी या अधिकारी पर कार्रवाई हुई।
प्रशासन चुप है, और यह चुप्पी सवाल खड़े कर रही है कि क्या यह मौन स्वीकृति है? अगर इतनी बड़ी लूट के बावजूद जिम्मेदारों की पहचान नहीं हुई — तो इसका मतलब साफ है, भ्रष्टाचार को ऊपर से संरक्षण मिला हुआ है।
“आदिवासी जन समाचार न्यूज़” की विशेष जांच श्रृंखला — पंचायत दर पंचायत खुलेंगे राज
आदिवासी जन समाचार न्यूज़ की विशेष टीम अब लैलूंगा जनपद के हर पंचायत का एक्स-रे करने निकली है,पहले चरण में — झरन, बसंतपुर और आमापाली पंचायत की रिपोर्ट, दूसरे चरण में — जामबहार पंचायत की हकीकत, तीसरे चरण में — पूरा जनपद और जनपद दफ्तर की ऑडिट फाइलों का विश्लेषण प्रकाशित किया जाएगा। यह सिर्फ खबर नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार के नेटवर्क की सच्ची पड़ताल है।
जनता के पैसों के इस खेल में जिम्मेदार कौन?
लैलूंगा जनपद में विकास के नाम पर जो खेल चल रहा है, वह जनता के विश्वास और लोकतंत्र दोनों के साथ धोखा है।
अब यह जानना ज़रूरी है कि आखिर जिम्मेदार कौन है — पंचायत सचिव, रोजगार सहायक, जनपद अधिकारी या ऑडिट देने वाली टीम? जब तक जवाबदेही तय नहीं होती, तब तक लैलूंगा में विकास नहीं बल्कि लूट का तंत्र चलता रहेगा।“आदिवासी जन समाचार न्यूज़” आने वाले दिनों में इस महाघोटाले की परतें एक-एक कर जनता के सामने रखेगा।