
रायगढ़। जिले के लैलूंगा जल संसाधन विभाग में करोड़ों की लागत से बन रही नहरें बनते ही फटने लगीं। घटिया निर्माण, सरकारी मिलीभगत और ठेकेदारों की लूट ने किसानों की उम्मीदों को चकनाचूर कर दिया है। आखिर यह कैसा विकास है, जहां करोड़ों की नहरें पहली बारिश भी नहीं झेल पाएंगी? क्या इस भ्रष्टाचार की गूंज सरकार तक नहीं पहुंचेगी?
सत्ता चुप क्यों? क्या ठेकेदारों के आगे प्रशासन बिका हुआ है? :
लैलूंगा के किसानों ने वर्षों तक नहरों की मरम्मत की मांग की, लेकिन जब निर्माण कार्य शुरू हुआ, तो तीन इंच की कांक्रीट परत डालकर खानापूर्ति कर दी गई। ठोस बेस तक नहीं बनाया गया, जिसके कारण नहरें दरारों से चटकने लगीं। जब किसानों ने शिकायत की, तो ठेकेदारों ने सिर्फ सीमेंट का लेप लगाकर लीपापोती कर दी।
अब सवाल यह उठता है कि प्रशासन इस घोटाले पर चुप क्यों है? :
क्या अधिकारियों और ठेकेदारों के बीच गुप्त समझौता हो चुका है?
विधायक विद्यावती सिदार ने निरीक्षण का वादा किया था, लेकिन अब तक मौके पर क्यों नहीं पहुंचीं?
कांग्रेस जिलाध्यक्ष नागेंद्र नेगी ने जांच समिति बनाने की बात कही थी, लेकिन अब तक कोई टीम क्यों नहीं बनी?
भाजपा और कांग्रेस दोनों खामोश-क्या सत्ता से बड़ा ठेकेदारों का रसूख है?…
किसानों की आवाज़ उठाने वाली राजनीतिक पार्टियां इस घोटाले पर क्यों मौन हैं?
क्या सत्ता ठेकेदारों के आगे घुटने टेक चुकी है?
क्या जनता के हक पर डाका डालने वालों को राजनीतिक संरक्षण मिला हुआ है?
यह सिर्फ नहर का घोटाला नहीं, किसानों के भविष्य पर हमला है :
अगर जल्द कार्रवाई नहीं हुई, तो कुछ महीनों में नहरें पूरी तरह ध्वस्त हो जाएंगी और किसान पानी के लिए फिर संघर्ष करेंगे। क्या सरकार को सिर्फ बड़े-बड़े दावे करने हैं, या फिर किसानों की वास्तविक समस्याओं को हल करना भी उनकी जिम्मेदारी है?
अब सवाल सरकार से :
1. इस घोटाले की उच्चस्तरीय जांच कब होगी?
2. जिम्मेदार अधिकारियों और ठेकेदारों पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही?
3. सत्ता में बैठे नेता किसानों के साथ खड़े होंगे या भ्रष्टाचारियों के साथ?
अगर इस मामले पर तुरंत कार्रवाई नहीं हुई, तो यह घोटाला सरकार के लिए बड़ा संकट बन सकता है!